24-04-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

वर्तमान ब्राह्मण जन्म - हीरे तुल्य

श्रेष्ठ स्वमान में स्थित करने वाले, राज्य भाग्य अधिकारी बच्चों प्रति बापदादा बोले:-

आज बापदादा अपने सर्व श्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं। विश्व की तमोगुणी अपवित्र आत्माओं के अन्तर में कितनी श्रेष्ठ आत्मायें हैं! दुनिया में सर्व आत्मायें पुकारने वाली हैं, भटकने वाली, अप्राप्त आत्मायें हैं। कितनी भी विनाशी सर्व प्राप्तियाँ हो फिर भी कोई न कोई अप्राप्ति जरूर होगी। आप ब्राह्मण बच्चों को सर्व प्राप्तियों के दाता के बच्चों को अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। सदा प्राप्ति स्वरूप हो। अल्पकाल के सुख के साधन अल्पकाल के वैभव, अल्पकाल का राज्य अधिकार न होते हुए भी बिन कौड़ी बादशाह हो। बेफिकर बादशाह हो। मायाजीत, प्रकृतिजीत स्वराज्य अधिकारी हो। सदा ईश्वरीय पालना में पलने वाले खुशी के झूले में, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले हो। विनाशी सम्पत्ति के बजाए अविनाशी सम्पत्तिवान हो। रत्न जड़ित ताज नहीं लेकिन परमात्म बाप के सिर के ताज हो। रतन जड़ित शृंगार नहीं लेकिन ज्ञान रत्नों, गुणों रूपी रत्नों के शृंगार से सदा शृंगारे हुए हो। कितना भी बड़ा विनाशी सर्व श्रेष्ठ हीरा हो, मूल्यवान हो लेकिन एक ज्ञान के रत्न, गुण के रत्न के आगे उनकी क्या वैल्यु हैं? इन रत्नों के आगे वह पत्थर के समान हैं। क्योंकि विनाशी हैं। नौ लखे हार के आगे भी आप स्वयं बाप के गले का हार बन गये हो। प्रभु के गले के हार के आगे नौ लाख कहो वा नौ पद्म कहो वा अनगिनत पद्म के मूल्य का हार कुछ भी नहीं है। 36 प्रकार का भोजन भी इस ब्रह्मा भोजन के आगे कुछ नहीं है। क्योंकि डायरेक्ट बापदादा को भोग लगाकर इस भोजन को परमात्म प्रसाद बना देते हो। प्रसाद की वैल्यु आज अन्तिम जन्म में भी भक्त आत्माओं के पास कितनी हैं? आप साधारण भोजन नहीं खाते। प्रभु प्रसाद खा रहे हो। जो एक-एक दाना पद्मों से भी श्रेष्ठ है। ऐसी सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हो। ऐसा रूहानी श्रेष्ठ नशा रहता है? चलते-चलते अपनी श्रेष्ठता को भूल तो नहीं जाते हो? अपने को साधारण तो नहीं समझते हो? सिर्फ सुनने वाले या सुनाने वाले तो नहीं! स्वमान वाले बने हो? सुनने-सुनाने वाले तो अनेकानेक हैं। स्वमान वाले कोटों में कोई हैं। आप कौन हो? अनेकों में हो वा कोटों में कोई वालों में हो? प्राप्ति के समय पर अलबेला बनना - उन्हों को बापदादा कौन-सी समझ वाले बच्चे कहें? पाये हुए भाग्य को, मिले हुए भाग्य को अनुभव नहीं किया अर्थात् अभी महान भाग्यवान नहीं बने तो कब बनेंगे? इस श्रेष्ठ प्राप्ति के संगमयुग पर हर कदम यह स्लोगन सदा याद रखो कि ‘‘अभी नहीं तो कभी नहीं’’ समझा। अच्छा!

अभी गुजरात जोन आया है। गुजरात की क्या विशेषता है? गुजरात की यह विशेषता है - छोटा बड़ा खुशी में जरूर नाचते हैं। अपना छोटा-पन, मोटा-पन सभी भूल जाते हैं। रास के लगन में मगन हो जाते। सारी-सारी रात भी मगन रहते हैं। तो जैसे रास की लगन में मगन रहते, ऐसे सदा ज्ञान की खुशी की रास में भी मगन रहते हो ना! इस अविनाशी लगन में मगन रहने के भी नम्बरवन अभ्यासी हो ना! विस्तार भी अच्छा है। इस बारी मुख्य स्थान (मधुबन) के समीप के साथी दोनों जोन आये हैं। एक तरफ है गुजरात, दूसरे तरफ है राजस्थान। दोनों समीप हैं ना! सारे कार्य का सम्बन्ध राजस्थान और गुजरात से है। तो ड्रामा अनुसार दोनों स्थानों को सहयोगी बनने का गोल्डन चांस मिला हुआ है। दोनों हर कार्य में समीप और सहयोगी बने हुए हैं। संगमयुग के स्वराज्य की राजगद्दी तो राजस्थान में हैं ना! कितने राजे तैयार किये हैं? राजस्थान के राजे गाये हुए हैं। तो राजे तैयार हो गये हैं या हो रहे हैं? राजस्थान में राजाओं की सवारियाँ निकलती हैं। तो राजस्थान वालों को ऐसा पूरी सवारी तैयार कर लानी चाहिए। तब तो सब पुष्पों की वर्षा करेंगे ना! बहुत ठाठ से सवारी निकलती है। तो कितने राजाओं की सवारी आयेगी? कम से कम जहाँ सेवाकेन्द्र है वहाँ का एक-एक राजा आवे तो कितने राजे हो जायेंगे। 25 स्थानों के 25 राजे आवें तो सवारी सुन्दर हो जायेगी ना! ड्रामा अनुसार राजस्थान में ही सेवा की गद्दी बनी है। तो राजस्थान का भी विशेष पार्ट है। राजस्थान से ही विशेष सेवा के घोड़े भी निकले हैं ना। ड्रामा में पार्ट है सिर्फ इनको रिपीट करना है।

कर्नाटक का भी विस्तार बहुत हो गया है। अब कर्नाटक वालों को विस्तार से सार निकालना पड़े। जब मक्खन निकालते हैं तो पहले तो विस्तार होता है फिर उससे मक्खन ‘सार’ निकलता है। तो कर्नाटक को भी विस्तार से अब मक्खन निकालना है। सार स्वरूप बनना और बनाना है। अच्छा-

अच्छा, अपने श्रेष्ठ स्वमान में स्थित रहने वाले, सर्व प्राप्तियों के भण्डार, सदा संगमयुगी श्रेष्ठ स्वराज्य और महान भाग्य के अधिकारी आत्माओं को, सदा रूहानी नशे और खुशी स्वरूप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से

सभी अपने स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? स्वराज्य का अधिकार मिल गया? ऐसी अधिकारी आत्मायें शक्तिशाली होंगी ना! राज्य को - ‘सत्ता’ कहा जाता है। सत्ता अर्थात् शक्ति। आजकल की गवर्मेन्ट को भी कहते हैं - राज्य सत्ता वाली पार्टी है। तो राज्य की सत्ता अर्थात् शक्ति है। तो स्वराज्य कितनी बड़ी शक्ति है? ऐसी शक्ति प्राप्त हुई है? सभी कमेन्द्रियाँ आपकी शक्ति प्रमाण कार्य कर रही हैं? राजा सदा अपनी राज्य सभा को, राज्य दरबार को बुलाकर पूछते हैं कि - कैसे राज्य चल रहा है? तो आप स्वराज्य अधिकारी राजाओं की कारोबार ठीक चल रही है? या कहाँ नीचे-ऊपर होता है? कभी कोई राज्य कारोबारी धोखा तो नहीं देते हैं! कभी आँख धोखा दे, कभी कान धोखा दे, कभी हाथ, कभी पांव धोखा दे! ऐसे धोखा तो नहीं खाते हो! अगर राज्य सत्ता ठीक है तो हर संकल्प, हर सेकण्ड में पद्मों की कमाई है। अगर राज्य सत्ता ठीक नहीं है तो हर सेकण्ड में पद्मों की गँवाई होती है। प्राप्ति भी एक की पद्मगुणा है तो और फिर अगर गँवाते हैं तो एक का पद्मगुणा गँवाते हो। जितना मिलता है - उतना जाता भी है। हिसाब है। तो सारे दिन की राज्य कारोबार को देखो। आँख रूपी मंत्री ने ठीक काम किया? कान रूपी मंत्री ने ठीक काम किया? सबकी डिपार्टमेन्ट ठीक रही या नहीं? यह चेक करते हो या थक कर सो जाते हो? वैसे कर्म करने से पहले ही चेक कर फिर कर्म करना है। पहले सोचना फिर करना। पहले करना पीछे सोचना, यह नहीं। टोटल रिजल्ट निकालना अलग बात है लेकिन ज्ञानी आत्मा पहले सोचेगी फिर करेगी। तो सोचसमझ कर हर कर्म करते हो? पहले सोचने वाले हो या पीछे सोचने वाले हो? अगर ज्ञानी पीछे सोचे उसको ज्ञानी नहीं कहेंगे। इसलिए सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हैं और इसी स्वराज्य के अधिकार से विश्व के राज्य अधिकारी बनना ही है। बनेंगे या नहीं - यह क्वेश्चन नहीं। स्वराज्य है तो विश्व राज्य है ही। तो स्वराज्य में गड़बड़ तो नहीं है ना? द्वापर से तो गड़बड़ शालाओं में चक्कर लगाते रहे। अब गड़बड़ शाला से निकल आये, अभी फिर कभी भी किसी भी प्रकार की गड़बड़ शाला में पांव नहीं रखना। यह ऐसी गड़बड़ शाला है एक बार पांव रखा तो भूल भुलैया का खेल है! फिर निकलना मुश्किल हो जाता। इसलिए सदा एक रास्ता। एक में गड़बड़ नहीं होती। एक रास्ते पर चलने वाले सदा खुश - सदा सन्तुष्ट।

बैंगलोर हाईकोर्ट के जस्टिस से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

किस स्थान पर और क्या अनुभव कर रहे हो? अनुभव सबसे बड़ी अथार्टी है। सबसे पहला अनुभव है - आत्म-अभिमानी बनने का। अब आत्म-अभिमानी का अनुभव हो जाता है तो परमात्म-प्यार, परमात्म-प्राप्ति का भी अनुभव स्वत: हो जाता है। जितना अनुभव उतना शक्तिशाली। जन्म-जन्मान्तर के दु:खों से छुड़ाने की जजमेन्ट देने वाले हो ना! या एक ही जन्म के दु:खों से छुड़ाने वाले जज हो? वह तो हुए हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट का जज। यह है स्प्रिचुअल जज। इस जज बनने में पढ़ाई की वा समय की आवश्यकता नहीं है। दो अक्षर ही पढ़ने हैं - ‘आत्मा और परमात्मा’। बस। इसके अनुभवी बन गये तो स्प्रिचुअल जज बन गये। जैसे बाप जन्म-जन्म के दु:खों से छुड़ाने वाले हैं - इसलिए बाप को सुख का दाता कहते हैं, तो जैसा बाप वैसे बच्चे। डबल जज बनने से अनेक आत्माओं के कल्याण निमित्त बन जायेंगे। आयेंगे एक केस के लिए और जन्मजन्म के केस जीत कर जायेंगे। बहुत खुश होंगे। तो बाप की आज्ञा है- ‘स्प्रिचुअल जज बनो’। अच्छा - ओमशान्ति।